“उद्धव ठाकरे की 5 प्रमुख गलतिया जिनके कारण उनके हाथों से फिसली शिवसेना: एक “नज़र”

उद्धव ठाकरे


महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष ने यह घोषणा की है कि चुनाव आयोग के अनुसार शिंदे गुट को ही वास्तविक शिवसेना माना जाएगा। इस फैसले में चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध 2018 के डेटा को मुख्य आधार बनाया गया है।

“राहुल नार्वेकर ने खारिज की उद्धव ठाकरे गुट की याचिका, शिंदे गुट को माना असली शिवसेना”

महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर द्वारा उद्धव ठाकरे गुट की याचिका को खारिज करने का निर्णय महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इस याचिका में शिंदे गुट के विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की गई थी, लेकिन अध्यक्ष ने इसे खारिज कर दिया और यह स्पष्ट किया कि विधानसभा में शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना जाएगा।

अध्यक्ष का यह भी कहना था कि चुनाव आयोग के सामने पेश किए गए पार्टी के संविधान को ही मान्यता दी जाएगी। इस निर्णय के पीछे के अहम कारणों की समीक्षा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उद्धव ठाकरे गुट के हाथों से शिवसेना का नियंत्रण निकल गया है। इस निर्णय के कई राजनीतिक और कानूनी परिणाम हो सकते हैं, और यह महाराष्ट्र की राजनीति में आगे के घटनाक्रमों को प्रभावित कर सकता है।

उद्धव ठाकरे गुट के हाथ से शिवसेना का नियंत्रण जाने के पीछे के पांच अहम कारणों की पड़ताल करना इस पूरे मामले की गहराई में जाने के लिए जरूरी है। ये कारण न केवल शिवसेना के आंतरिक राजनीतिक गतिविधियों से संबंधित हो सकते हैं, बल्कि व्यापक राजनीतिक परिदृश्य और रणनीतियों से भी जुड़े हो सकते हैं।

“उद्धव ठाकरे ने समय पर पार्टी संविधान को पंजीकृत नहीं कराया: विधानसभा अध्यक्ष”

विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने अपने निर्णय का ऐलान करते हुए उल्लेख किया कि उद्धव ठाकरे ने उचित समय पर अपनी पार्टी के संविधान को चुनाव आयोग में पंजीकृत नहीं कराया था। इस कारणवश, पार्टी के 1999 के संविधान को ही निर्णय का आधार बनाया जाएगा। यह ध्यान देने योग्य है कि शिवसेना ने बाल ठाकरे के देहांत के पश्चात, वर्ष 2013 और 2018 में अपने संविधान में संशोधन किए थे, लेकिन इन्हें चुनाव आयोग में पंजीकृत नहीं कराया गया था।

पार्टी संविधान से बड़ा ख़ुद को समझना

उद्धव ठाकरे का पार्टी संविधान के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया उनके लिए चुनौतियाँ खड़ी कर रहा है। शिवसेना के संविधान के अनुसार, किसी भी बड़े फैसले का अधिकार राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पास है, लेकिन उद्धव ठाकरे अपने व्यक्तिगत निर्णयों को प्राथमिकता देते हुए, कई बार इस प्रक्रिया को दरकिनार करते नजर आए। उनके इस तरह के निर्णय लेने की प्रक्रिया में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकें नहीं होती थीं, जिससे उन्होंने संविधान में निहित संरचना और प्रक्रिया को उपेक्षित कर दिया।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ताक़त को न समझना

इसके अलावा, उद्धव ठाकरे द्वारा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की शक्तियों को कमतर आंकना और इसकी बैठकें न बुलाना उनके खिलाफ गया। इस तरह के कदमों ने उन्हें पार्टी के भीतर और बाहर विवादों के केंद्र में ला दिया। विधानसभा अध्यक्ष के सामने इस मुद्दे को शिंदे गुट की ओर से प्रमुखता से उठाया गया, जो उनकी नेतृत्व शैली पर सवाल उठाता है।


एकनाथ शिंदे को बिना बैठक के पद से हटाने का विवाद

21 जून का दिन शिवसेना के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया था, जब एकनाथ शिंदे ने अपने समर्थक विधायकों के साथ पार्टी से बगावत कर दी और गुजरात चले गए। उसी दिन, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री और शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने अपने सरकारी आवास पर एक बैठक की, जिसमें शिंदे को विधायक दल के नेता के पद से हटाने का निर्णय लिया गया।

हालांकि, इस निर्णय को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष ने माना कि पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बिना विधायक दल के नेता को हटाने का फैसला नहीं लिया जा सकता है। अध्यक्ष ने यह भी कहा कि शिवसेना का संविधान उद्धव ठाकरे को इस प्रकार के निर्णय लेने की अनुमति नहीं देता, जिससे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे।

व्हिप जारी करने के अधिकार की उपेक्षा

विधानसभा अध्यक्ष ने उद्धव ठाकरे गुट द्वारा व्हिप जारी करने के अधिकार की अनदेखी को एक महत्वपूर्ण कारण के रूप में चिह्नित किया। पारंपरिक रूप से, व्हिप का जारी होना विधानसभा में पार्टी के नेता द्वारा किया जाता रहा है। हालांकि, उद्धव गुट ने यह अधिकार सुरेश प्रभु को सौंप दिया, जो पार्टी के विधायक दल के नेता का प्राथमिक अधिकार है। पार्टी अध्यक्ष के पास यह अधिकार नहीं माना जाता है। इस गलती को आधार बनाकर, राहुल नार्वेकर ने अपना फैसला सुनाया।

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