“Lal Bahadur Shastri की पुण्यतिथि:11 jan उनकी मृत्यु का रहस्य, ताशकंद में उस रात की कहानी”

Intro:”उजबेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में 11 जनवरी को Lal Bahadur Shastri का निधन हुआ था। उनकी मौत की वजह कही गई थी हार्ट अटैक, लेकिन कुछ इसे जहर के साथ जोड़ा भी गया था।”

Lal Bahadur Shastri ji

Lal Bahadur Shastri Death Anniversary: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री Lal Bahadur Shastri को सादगी और शालीनता के प्रति उनकी पहचान थी। उनका व्यक्तित्व मीठी भाषा और सिद्धांतों से भरा हुआ था। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद उन्होंने लगभग डेढ़ साल तक देश का प्रधानमंत्री पद संभाला। उन्होंने अपनी क्षमता और नेतृत्व कौशल से देश को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई।

दुर्भाग्यवश, प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उनकी मृत्यु रहस्यमयी रूप से हो गई। उनका निधन 11 जनवरी को उजबेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हुआ। सामान्यत: बताया जाता है कि हार्ट अटैक की वजह से उनका निधन हुआ, लेकिन कुछ यह भी कहते हैं कि उन्हें जहर दिया गया था।

आज हम उनकी पुण्यतिथि पर उनके निधन के दिन की घटनाओं की याद करते हैं और उनकी मौत के रहस्य को छेड़ते हैं।”

Lal Bahadur Shastri के प्रधानमंत्री कार्यकाल और 1965 की भारत-पाक युद्ध की जीत

Lal Bahadur Shastri, जिन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के पश्चात 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री का पद संभाला, उनका कार्यकाल लगभग 18 महीने का था। इस अवधि के दौरान, भारत ने 1965 के ऐतिहासिक युद्ध में पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की। इस युद्ध के समय, पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे।

पंडित नेहरू के निधन के उपरांत, 1964 में पाकिस्तान ने शास्त्री जी के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की थी। इस बैठक के बाद हुई अयूब खान और शास्त्री जी की मुलाकात में, शास्त्री जी की सादगी को देखकर अयूब खान को यह भ्रम हो गया कि वे कश्मीर को भारत से जबरन हथिया सकते हैं। लेकिन शास्त्री जी के दृढ़ नेतृत्व और संकल्प ने युद्ध के परिणाम को भारत के पक्ष में मोड़ दिया।

Lal Bahadur Shastri


1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध: Lal Bahadur Shastri की सादगी और पाकिस्तान की भूल

अयूब खान ने Lal Bahadur Shastri की सादगी को कमजोरी समझ लिया और इसे अपनी रणनीतिक गलती का आधार बनाया। उन्होंने कश्मीर पर कब्जा करने की मंशा से अगस्त 1965 में घुसपैठियों को भेज दिया, लेकिन यह कदम उल्टा पड़ गया। जब पाकिस्तानी सेना ने चंबा सेक्टर पर हमला किया, तब प्रधानमंत्री शास्त्री ने भारतीय सेना को पंजाब से मोर्चा खोलने का निर्देश दिया।

इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय सेना ने लाहौर की ओर कूच कर दिया और सितंबर 1965 में लगभग लाहौर पर कब्जा कर लिया। इस स्थिति में पाकिस्तान अपने महत्वपूर्ण शहर लाहौर को खोने की कगार पर पहुंच गया था। हालांकि, युद्ध की इस स्थिति में यूनाइटेड नेशंस ने 23 सितंबर 1965 को हस्तक्षेप किया, जिसके बाद भारत ने युद्धविराम की घोषणा की। इस युद्ध ने न केवल शास्त्री जी के दृढ़ नेतृत्व को सिद्ध किया बल्कि यह भी दर्शाया कि सादगी हमेशा कमजोरी नहीं होती।

ताशकंद राज: भारत-पाक समझौते की शुरुआत

ताशकंद राज की शुरुआत 1965 की भारत-पाक युद्ध के बाद हुई थी। इस युद्ध के पश्चात्, समझौते के लिए ताशकंद को चुना गया, जिसमें सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री एलेक्सेई कोजिगिन ने मध्यस्थता की थी।

ताशकंद समझौते का दिन तय किया गया था – 10 जनवरी 1966। इस समझौते के तहत, भारत और पाकिस्तान को अपनी सेनाओं को 25 फरवरी 1966 तक सीमा से पीछे हटाने का आदान-प्रदान था। समझौते के हस्ताक्षर के बाद, प्रधानमंत्री Lal Bahadur Shastri की 11 जनवरी की रात में रहस्यमयी मौत हो गई।

ताशकंद राज ने इस प्रमुख दिलचस्प विवाद के समाप्त होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद को सुलझाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

Lal Bahadur Shastri की मौत के रहस्य

भारत के प्रधानमंत्री Lal Bahadur Shastri की मौत एक रहस्यमयी और विवादास्पद घटना रही है। ताशकंद में 1966 में हुए समझौते के बाद उनका निधन हो गया, जिसने कई सवाल खड़े कर दिए। कहा जाता है कि शास्त्री जी समझौते के तहत हाजी पीर और ठिथवाल को पाकिस्तान को वापस देने के निर्णय के कारण भारी दबाव में थे।

उनकी पत्नी भी इस निर्णय से बेहद नाराज थीं, और उन्होंने शास्त्री से फोन पर बात करने से भी इंकार कर दिया था। इससे शास्त्री को गहरा आघात पहुंचा था।

उनके निधन के बाद, विभिन्न दावे सामने आए। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्हें जहर दिया गया था, जबकि अन्य लोगों का मानना था कि उनका निधन दिल के दौरे के कारण हुआ था। इस रहस्यमयी और अचानक मौत ने देश में कई प्रकार की अटकलें और सिद्धांतों को जन्म दिया, जो आज तक चर्चा में हैं।

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